इन बारिश की बूंदों का भी,
क्या मुझसे कोई बैर है ?
खडा हूँ बाहर सुबह से ,
फिर क्यों सूखा एहसास है?
ओस की बूंदों ने भी ,
खुद को फूलों में कैद किया,
पलकें बिछाई रात भर ,
मैंने भी उनकों था देखा !
फिर अगले दिन जब धूप खिली ,
सोचा, चलो, आंसूं तो सूखेंगे !
लेकिन कुदरत का रंग देखो ,
मैं फसा रहा यादों की छावं तले !
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